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03:43, 2 जनवरी 2011 <poem>
है जारी लूट हत्या का घिनौना सिलसिला अब तक
हमारे शहर से अम्नो अमा हैं लापता अब तक
हुई मुद्दत मुहब्बत का लिखा था हमने ख़त उनको
न जाने बात क्या है पर , नहीं उत्तर मिला अब तक
मेरी राहों में मस्जिद है तेरी राहों में बुतखाना
नहीं तय हो सका हमसे बस इतना फासला अब तक
गली बहरी है शायद मैं जहाँ आवाज देता हूँ
कोई दर क्या दरीचा भी नहीं कोई खुला अब तक
ये बादल आग बरसाता है बरसों से मगर यारो
किसी तूफ़ान का इस पर न कोई बस चला अब तक
हमें मंजिल तो मिल जाती, चले भी हम बहुत लेकिन
करें क्या तय न कर पाए 'अनिल' इक रास्ता अब तक</poem>