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03:56, 3 जनवरी 2011 {{KKRachna
|रचनाकार=लाला जगदलपुरी
|संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश / लाला जगदलपुरी
}}
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<poem>
सांसों की गलियो, संभलो तुम,
आशा की कलियो, संभलो तुम!
बगिया में नीरस फूल तथा
कैक्टस हैं अलियो, संभलो तुम!
उन्हें रिझाया कोलाहल नें,
स्नेह की अंजलियो, संभलो तुम!
बुझा न दे तुम्हें कहीं आँसू
रोशनी के टुकडो, संभलो तुम!
सहानुभूतियों को पहिचानो
त्रासदी के गुरगो, संभलो तुम!
</poem>