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कविता मेरी / कैलाश गौतम

47 bytes added, 07:06, 4 जनवरी 2011
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आलंबन, आधार यही है, यही सहारा है
 
कविता मेरी जीवन शैली, जीवन धारा है
 
यही ओढ़ता, यही बिछाता
 यही पहनता हूंहूँ
सबका है वह दर्द जिसे मैं
अपना कहता हूँ
देखो ना तन लहर-लहर
मन पारा-पारा है।
अपना कहता हूं देखो ना तन लहरपानी-लहर मन पारा-पारा है।  पानी सा मैं बहता बढ़ता रुकता -मुड़ता हूंहूँउत्सव -सा अपनों से जुड़ता और बिछुड़ता हूंहूँ उत्सव ही है राग हमारा  प्राण हमारा है।  नाता मेरा धूप छांह सेहै ।
नाता मेरा धूप-छाँह से
घाटी टीलों से
 मिलने ही निकला हूंहूँ
घर से पर्वत-झीलों से
  बिना नाव-पतवार धार में  दूर किनारा है।है ।</poem>
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