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बच्चू बाबू / कैलाश गौतम

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बच्चू बाबू एम.ए. करके सात साल झख मारे
खेत बेंचकर पढ़े पढ़ाई, उल्लू बने बिचारे
खेत बेंचकर पढ़े पढ़ाई उल्लू बने बिचारेकितनी अर्ज़ी दिए न जाने, कितना फूँके तापेकितनी धूल न जाने फाँके, कितना रस्ता नापे
लाई चना कहीं खा लेते, कहीं बेंच पर सोते
बच्चू बाबू हूए छुहारा, झोला ढोते-ढोते
कितनी अर्ज़ी दिए न जाने कितना फूँके तापेउमर अधिक हो गई, नौकरी कहीं नहीं मिल पाईचौपट हुई गिरस्ती, बीबी देने लगी दुहाई
कितनी धूल न जाने फाँके कितना रस्ता नापे  लाई चना कहीं खा लेते कहीं बेंच पर सोते बच्चू बाबू हूए छुहारा झोला ढोते-ढोते  उमर अधिक हो गई नौकरी कहीं नहीं मिल पाई चौपट हुई गिरस्ती बीबी देने लगी दुहाई  बाप कहे आवारा , भाई कहने लगे बिलल्ला नाक फुला भौजाई कहती , मरता नहीं निठल्ला  खून ग़‍रम हो गया एक दिन कब तक करते फाका लोक लाज सब छोड़-छाड़कर लगे डालने डाका
ख़ून ग़‍रम हो गया एक दिन, कब तक करते फाका
लोक लाज सब छोड़-छाड़कर, लगे डालने डाका
बड़ा रंग है, बड़ा मान है बरस रहा है पैसा
 सारा गाँव यही कहता है बेटा हो तो ऐसा।ऐसा ।</poem>
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