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[[Category:गीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>
तुमने छुआ, जगा मन मेरा
सच कहता हूँ मैं
मेरा तो अब हुआ सबेरा
सच कहता हूँ मैं ।
सच कहता हूँ मैं काया पलट गयी गई मेरी दिनचर्या बदल गयीगईजैसे कोई फांस फंसी फाँस फँसी थी खुद ख़ुद ही निकल गयीगई खूब ख़ूब मिला तू रैन-बसेरा सच कहता हूँ मैं। सारी उलझन सुलझ गयी हैमैं ।
सारी उलझन सुलझ गई है
तेरे दर्शन से
मेरे मन में समा गया तू
मन के दर्पण से
मैं हूँ तेरा सांप संपेरासाँप-सँपेरा
सच कहता हूँ मैं
आधा-तीहा नहीं रहा मैं
पूरमपूर हुआ
जैसा बाहर वैसा भीतर
मैं भरपूर हुआ
हुई रोशनी, छंटा अंधेराछँटा अँधेरासच कहता हूँ मैं।मैं ।</poem>