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सन्नाटा / कैलाश गौतम

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कलरव घर में नहीं रहा सन्नाटा पसरा है
 सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है।है ।
पानी ठहरा जहाँ, वहाँ पर
 
पत्थर बहता है
 
अपराधी ने देश बचाया
 हाकिम हाक़िम कहता है हाकिम हाक़िम का भी अपराधी से रिश्ता गहरा है।है ।
हँसता हूँ जब तुम कबीर की
 
साखी देते हो
 
पैर काटकर लोगों को
 वैसाखी बैसाखी देते हो दहशत में है आम आदमी, तुमसे खतरा है।ख़तरा है ।
ठगा गया है आम आदमी
 
आया धोखे में
 घर में भूत जमाये जमाए डेरा 
देव झरोखे में
गूंगों की पंचायत करने वाला बहरा है ।
गूंगों की पंचायत करने वाला बहरा है।
 
 
जैसा तुम बोओगे भाई!
जैसा तुम बोओगे भाई !
वैसा काटोगे
 
भैंसे की मन्नत माने हो
 
भैंसा काटोगे
 तेरी बारी है चोरी की, तेरा पहरा है।है ।</poem>
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