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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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मीठे अल्फ़ाज़ की जज़्बात पे बारिश करना
भा गया दिल को मेरे उसका नवाज़िश करना

फ़ितरते-हुस्न में शामिल है सितम आशिक़ पर
फ़ितरते-इश्क़ सितम सह के है नाज़िश करना

मैंने जब उसकी सहेली से कहा, हँसने लगी
रात को छत पे मिले, उससे गुज़ारिश करना

दिल तो दिल है वो अदाओं पे भी आ सकता है
क्या ज़रूरी है बदन की यूं नुमाइश करना

जिसने उम्मीद का आईना कुचल डाला हो
उससे बेकार है दिल, प्यार की ख़्वाहिश करना

मैं तो शाइर हूँ किया नज़्म तुझे मैंने 'रक़ीब'
"कोई आसां नहीं औरों की सताइश करना"
</poem>
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