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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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वतन पे वीर हमेशा निसार होते हैं
"चमन के फूल चमन की बहार होते हैं"

कभी न मिलने पे होते थे बेक़रार बहुत
अब उनसे मिल के भी हम बेक़रार होते हैं

बनो तो मुफ़लिसो-नादार के बनो मेहमाँ
वो मेहजबान बड़े ग़मगुसार होते हैं

ये तेरी ज़ुल्फ़ बिखरती है जब तेरे रुख़ पर
निसार होते हैं, मौसम निसार होते हैं

जो बात आती है होटों पे हुस्न वालों के
उस एक बात के मतलब हज़ार होते हैं

तमाम रात वो तारे शुमार करता रहा
भला किसी से ये तारे शुमार होते हैं

'रक़ीब' होते हैं वो लोग पैकरे-उल्फ़त
के जिनके दामने-दिल तार-तार होते हैं
</poem>
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