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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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राहे वफ़ा में जो चलता है तनहा तनहा
सूरज पश्चिम में ढलता है तनहा तनहा

उजियारे के चाहने वालो सोचा भी है
दीपक क्या कोई जलता है तनहा तनहा

होटों पर मुस्कान है फ़ीकी, पलकें सूखी
मन में कोई दुःख पलता है तनहा तनहा

तेरे इतराने हँसने पर सब हँसते हैं
मुझको जाने क्यों खलता है तनहा तनहा

साये के संग तेरी यादें भी होती हैं
मेरा साया जब चलता है तनहा तनहा

मौका पाकर जो खोता है सुन लो 'रक़ीब'
हाथ हमेशा वो मलता है तनहा तनहा
</poem>
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