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<Poem>
राज्य -लिप्सा के नशे में, विहँसता है आज दानव !
स्वर्ण सत्ता के सहारे , नग्न होकर नाचता नर !
शक्तिशाली दीन-शोणित पी रहा है पेट भर भर !
आज प्रथ्वी पृथ्वी पर पिशाचों की ठिठोली चल रही है !
आज होली जल रही है !
आज अबला नारियों की ,लाज लुटती जा रही है !
चक्षु में चिंगारियों की ज्वाल जुटती जा रही है !
दलित -जीवन-पात्र में अब हिंस्त्र हाली हिंस्र होली ढल रही है !
आज होली जल रही है !
श्रष्टि सृष्टि में शीतल सुमन भी खिल सकेंगे आज कैसे !
स्वार्थ से उन्मत्त मानव, मिल सकेंगे आज कैसे !
रक्त शोषण की भयंकर भावना जो पल रही है !
आज होली जल रही है !
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