Changes

झूठ के पाँव / अभय मौर्य

44 bytes added, 05:46, 14 जनवरी 2011
{{KKCatKavita}}
<poem>
कहते हैं झूठ के पांव पाँव नहीं होते।होते ।
पर मुहावरा पलट जाता है तब
जब झूठ बोलने वाला
है जाने-माने, लंबे-तगड़े साठ-बरसिया
अठारह वर्ष की चुलबुली-सी बच्ची से
प्रेम लीला में डूबा ‘यूवा’।‘युवा’।तो सवाल उठता है कि झुठ झूठ में दम है?जरूर ज़रूर होगा, नहीं तो क्यों नहीं आती है घिन लाखों -करोड़ों युवाओं के रोल मॉडल कीउस बात से जो है जन-जन के लबों पर?
अब इसमें बिचौलियों को घसीटें?दलाल की ‘दरिंदगी भरी’ आंखें आँखें भीकभी-कभी चौंधियां चौंधियाँ जाती हैं।
पथरा जाती है वे और
Writing on the wall राइटिंग ऑन द वॉल उन्हेंबिल्कुल नजर नज़र नहीं आती।आती ।
अहंकारवश दल्लों की तो याददास्त भी धूमिल हो गईः
भूल गए हैं वे कि क्या हशर हुआ था उनका
जिन्होंने चलाया था गोयबल-सा रिकार्ड तोड़ झूठ का अभियानःअभियान :कि चमक रहा है इंडिया, दमक रहा है भारत।भारत ।
दलालों को तो यह भी याद न रहा
कि लगाई थी उन्होंने सुप्रीमकोर्ट में जबरदस्त गुहार
कि टेलिफोन CD सीडी को जगजहिर न होने दें,आज खुद बांटते बाँटते फिरते हैं दूसरों की सीडी सरे आम।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits