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14:58, 15 जनवरी 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गिरिधर
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[[Category:कुण्डलियाँ]]
<poem>
लाठी में हैं गुण बहुत , सदा रखिये संग ।
गहरि नदी, नाली जहाँ , तहाँ बचावै अंग ।।
तहाँ बचावै अंग , झपटि कुत्ता कहँ मारे ।
दुश्मन दावागीर होय , तिनहूँ को झारै ।।
कह गिरिधर कविराय , सुनो हे दूर के बाठी ।
सब हथियार छाँडि , हाथ महँ लीजै लाठी ।।
</poem>