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रोज़ समय का चाकू / हेमन्त शेष
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|संग्रह=अशुद्ध सारंग / हेमन्त शेष
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रोज़ समय का चाकू
हमारा दुनिया का सेब चीरता है
घिरते हुए शोक की पौष्टिकता में
हम प्रफुल्लित होते हैं
दोनों एक से हैं-- स्वास्थ्य और बीमारी
चाकू के सामने
कटती हुई दुनिया में
<poem>
अनिल जनविजय
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