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|रचनाकार=चाँद हादियाबादी
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रोशनी की डगर नहीं आती
उनकी सूरत नज़र नहीं आती

अब अँधेरों से घिर गया हूँ मैं
नहीं आती सहर नहीं आती

हाय अब उम्र भर का रोना है
मुस्कुराहट नज़र नहीं आती

ऐसा बदला मिजाज़ मौसम का
अब नसीमे-सहर नहीं आती

अब तो साहिल पे ग़म का साया है
अब ख़ुशी की लहर नहीं आती

जिनकी सूरत बसी है आँखों में
उनकी सूरत नज़र नहीं आती

चाँद है बादलों के घर मेहमाँ
चाँदनी अब इधर नहीं आती
</poem>