{{KKCatKavita}}
<poem>
चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा '''यह कविता अधूरी है। कृपया आपके पास हो जाय पराधिन नहीं गंग की धारा तो इसे पूरा कर दें ।'''
शंकर की पुरी चीन ने सेना को उतारा
चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा
हो जाए पराधीन नहीं गंगा की धारा
गंगा के किनारों को शिवालय ने पुकारा
हम भाई समझते जिसे दुनियां में उलझ के
हम भाई समझते जिसे दुनिया में उलझ के
वह घेर रहा आज हमें बैरी समझ के
चोरी भी करे और करे बात गरज के