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13:55, 25 जनवरी 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चाँद हादियाबादी
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<poem>
इस तरह सताया है परेशान किया है
जैसे कि मुहब्बत नहीं एहसान किया है
सोचा था कि तुम दूसरों से हट के हो लेकिन
तूने भी वही काम मेरी जान किया है
हर रोज़ सजाती हैं तेरी याद में मोती
आँखों ने पिरोने का फ़कत काम किया है
मुश्किल था बहुत करना किनाराकशी उससे
यह काम भी उसने मेरा आसान किया है
लोगो न करो इस तरह तुम `चाँद’ की बातें
धरती का भी तुमने बहुत अपमान किया है
</poem>