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पहचान / अज्ञेय
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12:36, 2 फ़रवरी 2011
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तुम वही थीं :
किन्तु ढलती धूप का कुछ खेल था-
ढलती उमर के दाग़ उसने धो दिये थे।
अनिल जनविजय
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