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बाग़ी / मख़दूम मोहिउद्दीन

No change in size, 17:09, 4 फ़रवरी 2011
शोरे नाला<ref>गम की प्रार्थना</ref> से दर-ए अर्ज़ो समाँ<ref>ज़मीन और आकाश</ref> तोड़ूँगा ।
ज़ुल्म परवर<ref>ज़ुल्म का पालन करने वाला</ref>, रविश-ए अहले जहाँ<ref>संसार के लोगों का चलन</ref> तोड़ूँगा
इशरत आबाद<ref>भिगभोग-विलास की दुनिया</ref> अमारत<ref>अमीरी</ref> का मकाँ तोड़ूँगा ।
तोड़ डालूँगा मैं ज़ंजीरे असीरान-ए-क़फ़स<ref>जेल के क़ैदियों की ज़ंजीरें</ref>
दहर को पन्ज-ए-उसरत<ref>ज़माने को ग़रीबी के पंजे से</ref> से छुड़ाने दे मुझे ।
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