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18:37, 4 फ़रवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
|संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम
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<poem>
द्रश्य जारी हैं मगर परदे गिराए जा रहे हैं
जाने किस शैली में अब नाटक दिखाए जा रहे हैं
देश क्या अब भी नहीं पहुचेगा उन्नति के शिखर पर
नित्य ही दो चार उदघाटन कराये जा रहे हैं
छिड़ गया है स्वच्छता अभियान शायद शह्र भर में
गन्दगी के ढेर सडकों पर सजाये जा रहे हैं
दृष्टि में शासन की सर्वोपरि है कुछ तो लोकसेवा
लोक सेवा के लिए अफसर बढ़ाये जा रहे हैं
शांति के प्रति विश्व का उत्साह बढाता जा रहा है
अब कबूतर की जगह राकेट उडाये जा रहे हीं
झूठ तिकडम लूट रिश्वत राहजनी हत्या डकैती
जिन्दा रहने के हमें सब गुर सिखाए जा रहे हैं
एहतराम उड़ पायेगा कोई बराबर आपके क्या
आप संबंधों के राकेट में उडाये जा रहे हैं
</poem>