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अपने से बाहर / लीलाधर जगूड़ी
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10:59, 5 फ़रवरी 2011
{{KKRachna
|रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी
}}<poem>
जब
घाटी
में था
से देखा
तो
शिखर सुन्दर
, सुंदर
दिखता था
शिखर
अब
शिखर पर
पहुंचा
हूँ
तो
बहुत
ज़्यादा
सुन्दर
दिख रही
दिखती है
घाटी. अपने से बाहर
जहां
जहाँ
से भी देखोदूसरा ही सुन्दर दिखता है
.
।
</
POEM
poem
>
अनिल जनविजय
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