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अपने से बाहर / लीलाधर जगूड़ी

22 bytes added, 10:59, 5 फ़रवरी 2011
{{KKRachna
|रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी
}}<poem>जब घाटी में था से देखा तो शिखर सुन्दर , सुंदर दिखता थाशिखर अब शिखर पर पहुंचाहूँ तो बहुत ज़्यादा सुन्दर दिख रही दिखती है घाटी. अपने से बाहर जहां जहाँ से भी देखोदूसरा ही सुन्दर दिखता है.</POEMpoem>
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