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चंद्रोदय / दिनेश कुमार शुक्ल

159 bytes removed, 13:00, 10 फ़रवरी 2011
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<poem>नीले पीले लाल सुनहरेगहरे-गहरे रंगघटा में उभर रहे हैंउड़ो हंस !
शायद कोई पृथ्वीनभ के अन्तरतम इस सोती हुई नीलिमा मेंजन्म ले रहीकुछलहरें पैदा करो
हो सकता हैतुम्हारे उड़ने सेबादल के परदों के पीछेचन्द्रमा उदय होकररंगमंच होकिसी दूसरी ही दुनिया कामुँडेर तक आ जायेगा
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