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सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 11
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12:16, 14 फ़रवरी 2011
जादिन अधिक सनेह सों, सपन दिखायो मोहिं ।
सेा
से
देख्यो परतच्छ ही,सपन न निसफल होहिं ।।113।।
अनिल जनविजय
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