वो इन्क़लाब का पैग़म्बर तेलंगाना ।
इमाम-ए तिश्तालबाँ<ref>प्यासे अधर</ref> ख़िज्रे राहे आबे हयात<ref>अमृत</ref>
अँधेरी रात के सीने में मशालों की बरात ।
मेरा सिबात<ref>दृढ़ता</ref> मेरी कायनात मेरी हयात
सलाम महर-ए बग़ावत<ref>विद्रोही सूर्य</ref>, सलाम माह-ए नजात<ref>आज़ादी का चाँद</ref>।
सियाह रात जराइम पनाह<ref>अपराधों को छिपाने वाली</ref> ज़ुल्म बदोश<ref>अत्याचारों को छिपाए हुए</ref>
सियाह रात में बदकार मस्त और मदहोश ।
सियाह रात में मक़्तूल<ref>जिनका वध किया गया हो</ref> इस्मतों का ख़रोश<ref>हाहाकार</ref>
सियाह रात में बाग़ी अवाम बर्क़बदोश<ref>बिजलियाँ छिपाए हुए</ref> ।
उठे हैं तेग़ बकफ़<ref>हाथ में तलवार लिए हुए</ref> यूँ बसद हज़ार जलाल<ref>प्रताप, तेज</ref> वो कोह वो दश्त के फ़रज़न्द<ref>पुत्र</ref> खेतियों के लाल ।
चमक रही है दराँती उछल रहे हैं कुदाल
बिनाए क़स्रे इमारत शिकिस्ता-व-पामाल<ref>टूट कर गिरी हुई</ref> ।
नए अवाम, नई आब-ओ-ताब की दुनिया
वो रंगो नूर की महफ़िल शबाब की दुनिया ।
सलाम सुर्ख़ शहीदों की सरज़मीन सलाम
सलाम अज़्म-ए-बुलन्द<ref>भीष्म प्रतिज्ञा</ref>, आहनी यक़ीन सलाम ।