हाय मेरी वेदना को पर न कोई गा सका।
भारत में सनसनीखेज खुलासे करने के लिये विख्यात ‘तहलका’ पत्रिका द्वारा हाल ही 2011 में उत्तराखंड के दस महानायकों की सूची में कविवर चंद्र कुंवर बर्त्वाल को स्थान देते हुये लिखा गया हैः-
हिंदी साहित्य में छायावाद के प्रतीक कविवर सुमित्रानंदन पंत तो देश दुनिया के साहित्य जगत में प्रसिद्व हैं ही इसलिये तहलका ने चुना हिमवंत के कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल को जिन्होंने मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था। समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का कालिदास मानते हैं।
प्रारंभ में वे ‘रसिक नाम से लिखते थे।
कविवर चंद्र कुंवर बर्त्वाल की डायरी में एक स्थान पर लिखा हैः-
मेरा ध्येय हिंदी की सेवा करना होगा। मेरा आजन्म प्रयास होगा कि हिंदी को कोई नयी चीज भेंट करूं जो मेरे ही घर की बनी हो, विलायत जापान से बनकर नहीं आयी हो।
डायरी के पृष्ठ पर अंकित तिथि 6 मार्च, 1938
साहित्यकार मंगलेश डबराल लिखते हैः-
‘‘ कई साल पहले पडी चंद्र कुंवर बर्त्वाल की दो पंक्तियां-
अपने उद्गम को लौट रही, जीवन की नदियां मेरी’
आज भी मुझे विचलित कर देती हैं।’’
प्रसिद्व विद्वान डॉ0 वासुदेव शरण अग्रवाल के शब्दों मेंः-
‘‘श्री चंद्र कुंवर बर्त्वाल कब हिंदी संसार में आए और कब चले गए इसका किसी को पत नहीं लगा, लेकिन उनके रूप में हिंदी साहित्य ने अपना सबसे बडा गीति काब्य रचयिता पाया और खो दिया।’’
चन्द्रकुंवर बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। हिन्दी साहिन्य के भण्डार की समृद्वि और हिन्दी काव्य जगत मंे उनका योगदान विशेष उल्लेखनीय है। हिमालय का सौंदर्य और उसके विविध चित्र उनके काव्य में यत्र तत्र अनायास ही बिखरे मिल जाते है। वे मूलतः कवि थे। इसलिये गीत और कवितायंे उन्होने मुख्य रूप से लिखी हैं। अव तक उपलब्ध और अन्वेषित रचनाओं के आधार पर कह जा सकता हैकि उन्होने लगभग आठ सैा से अधिक गीत ओर कवितायें लिखी । इसके अतिरिक्त करीब 25 से अधिक गद्य रचनायें की , जिनमें कहानी, एकांकी, निबन्ध एवं आलोचनाऐं प्रमुख हैं। कवि अपनी रचनाओं का सुव्यवस्थित रूप से प्रकाशन नहीं कर पाए थे। यह श्रेय उनके तित्र पं0 शम्भू प्रसाद बहुगुणा को मिला। अब डा0 उमाशंकर सतीश ने भी उनकी 269 कविताओं व गीतों का प्रकाशन किया हेै। कवि का कृतित्व इस प्रकार है।
1-पयस्विनी, 350 कविताओं का पं0 शंभूप्रसाद बहुगुणा द्वारा संपादित संकलन
2-म्ेाधनन्दिनी, तीन भागों में संपादित संकलन 1953
3-जीतू, 100 कविताओं का संकलन 1951 प्रकाशक शंभूप्रसाद बहुगुणा ,आई टी कालेज लखनऊ
4-कंकड- पत्थर, 70 कविताओं का संकलन
5-गीत माधवी, 60 गीतों का संकलन ,प्रकाशक कुसुमपाल नीहारिका राय विहारी रोड़,लखनऊ
6-प्रणयिनी, तीन एकांकियों का संकलन, प्रकाशक कुसुमपाल नीहारिका राय विहारी रोड़,लखनऊ
7-विराट-ज्योति, 34 प्रगतिशील कविताओं का संकलन
8-नागिनी, गद्य कृतियों का पं0 शंभूप्रसाद बहुगुणा द्वारा संपादित संकलन
9-विराट-हृदय, प्रकाशक अलनन्दा-मंदाकिनी प्रकाशन, लक्षमण भवन हुसैन गंज, लखनऊ