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अन्दर भरे हलाहल/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
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20:33, 26 फ़रवरी 2011
होठों पर फिर भी,
खून
ख़ून
लगा दाँतों , मखमल के
बिछे बिछौने हैं ।
अनिल जनविजय
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