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07:36, 27 फ़रवरी 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मुकेश मानस
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<poem>
खुद से ही बेगाने हैं
दर्द भरे अफ़साने हैं
जब भी अपने भीतर झांका
तह्ख़ाने-तह्ख़ाने हैं
हमको धोखा देने वाले
सब जाने पहचाने हैं
अब भीतर का दिया जलालो
कदम-कदम वीराने हैं
1995
<poem>