गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से / गौतम राजरिशी
39 bytes added
,
08:53, 27 फ़रवरी 2011
बैठता हूँ जब भी "गौतम" दुश्मनों की घात में
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से
{गर्भनाल, अंक 49}
</poem>
Gautam rajrishi
235
edits