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परों का जब कभी / गौतम राजरिशी

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चिता की अग्नि ने बढ़ कर छुआ था आसमां को जब
धुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला {त्रैमासिक शेष, जुलाई-सितम्बर 2009 / गर्भनाल 49 अंक}</poem>
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