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ये कद-काठी के मेले में लबादा क्या करे / गौतम राजरिशी
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09:09, 27 फ़रवरी 2011
कड़ी है धूप राहों में ये सुनकर ही भला
गिरे खा ग़श, वो मंज़िल का इरादा क्या करे
{मासिक हंस, मार्च 2009}
</poem>
Gautam rajrishi
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