1,556 bytes added,
11:24, 27 फ़रवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= तुफ़ैल चतुर्वेदी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>वही रगों का टूटना वही बदन निढ़ाल माँ
वही नज़र धुँआ-धुआँ तू फिर मुझे संभाल माँ
मिलेगी तू जो अबके तो मुझे चहकता पायेगी
मुझे भी आ गया है दुख छुपाने का कमाल माँ
मैं ज़िन्दगी की उलझनों से भाग आया तेरे पास
न कर तलब-जवाब माँ न कर कोई सवाल माँ
हज़ारों ग़म थे प्यासे सबकी प्यास को लहू दिया
तेरी तरह किया है हमने काम बेमिसाल माँ
फिर आज बालपन की कुछ कहानियाँ सुना मुझे
है ज़र्द-ज़र्द ज़िन्दगी छिड़क ज़रा गुलाल माँ
सफ़ेद बाल सर पे, आ गई बदन पे झुर्रियाँ
उढ़ा गई हवायें देख मुझको तेरी शाल माँ
मेरे क़लम के रखरखाव से हरीफ़ जल उठे
मेरे उरूज ने दिया है फिर मुझे ज़वाल माँ
<poem>