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{{KKRachna
|रचनाकार= तुफ़ैल चतुर्वेदी
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<poem>वही रगों का टूटना वही बदन निढ़ाल माँ
वही नज़र धुँआ-धुआँ तू फिर मुझे संभाल माँ

मिलेगी तू जो अबके तो मुझे चहकता पायेगी
मुझे भी आ गया है दुख छुपाने का कमाल माँ

मैं ज़िन्दगी की उलझनों से भाग आया तेरे पास
न कर तलब-जवाब माँ न कर कोई सवाल माँ

हज़ारों ग़म थे प्यासे सबकी प्यास को लहू दिया
तेरी तरह किया है हमने काम बेमिसाल माँ

फिर आज बालपन की कुछ कहानियाँ सुना मुझे
है ज़र्द-ज़र्द ज़िन्दगी छिड़क ज़रा गुलाल माँ

सफ़ेद बाल सर पे, आ गई बदन पे झुर्रियाँ
उढ़ा गई हवायें देख मुझको तेरी शाल माँ

मेरे क़लम के रखरखाव से हरीफ़ जल उठे
मेरे उरूज ने दिया है फिर मुझे ज़वाल माँ
<poem>
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