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{{KKRachna
|रचनाकार= तुफ़ैल चतुर्वेदी
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<poem>शह्‍र तारीक, नज़र धुंधली, ख़राबा तारीक
दिल था तारीक तो फिर होनी थी दुनिया तारीक

मैं समझता था कि आँधी में जलेगा मेरा दीप
कर गया मेरा मकां एक ही झोंका तारीक

तेरे चेहरे की धनक अबके बरस भी न खिली
हमने ख़्वाबों का ये मौसम भी गुज़ारा तारीक

फिर मेरी बात को समझे नहीं मेरे साथी
ये सहीफ़ा भी मेरे दिल ने उतारा तारीक

पौ तो फूटी है दिखाई नहीं देता कुछ भी
कर दिया दिल के अँधेरे ने सवेरा तारीक

इक सियह ख़्वाब उजाले का पता क्या देता
जाँ थी तारीक तो फिर होनी थी दुनिया तारीक

देख कर हाल मेरा लौट गये साथ के लोग
मेरे ज़ख्मों ने किया लोगों का रस्ता तारीक
<poem>
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