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{{KKLokRachna
|रचनाकार=अज्ञात
}}
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
|भाषा=मैथिली
}}
<poem>
आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे,<br />
आहे तोहे शिव धरु नट भेष कि डमरू बजावथ हे।<br />
तोहे गौरी कहई छी नाचय कि हम कोना क नाचब हे,<br />
चारी सोच मोही होय कि हम कोना बांचब हे।<br />
अमिय चूई भूमि खसत बाघम्बर जागत हे,<br />
आहे होयत बाघम्बर बाघ बसहो धरि खायत हे।<br />
सिर स संसरत सांप कि भूमि लोटायत हे,<br />
आहे कार्तिक पोसल मयुर सेहो धरि खायत हे।<br />
जटा स छलकत गंगा दसो दिस पाटत हे,<br />
आहे होयत सहस्र मुख धार समेटलो नै जायत हे।<br />
मुंडमाल छूटि खसत मसानी जागत हे,<br />
आहे तोहे गौरी जेबहु पराय कि नाच के देखत हे।<br />
भनहि विद्यापति गाओल गावि सुनाओल हे,<br />
आहे राखल गौरी के मान चारु बचावल हे।
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