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{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
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<Poem>
कल का तुम्हारा
इतना खुश चेहरा
भूल नहीं पाऊँगा

जो भीतर-ही-भीतर
स्वीकार करता प्यार को
उत्फुल्ल हो उठा था

और जिस पर
दुख की आड़ी-तिरछी
तमाम लकीरों के बीच
रात्रि का एक
सुदूर उदित
तारा लिखा था ।
</poem>
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