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06:26, 3 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= तुफ़ैल चतुर्वेदी
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{{KKCatGhazal}}
<poem>सबको घाटा होना है
अब समझौता होना है
लौटेगी फिर देर से घर फिर वावैला होना है
अगर न तेरे हाथ छुयेँ
शहद तो कड़वा होना है
रातें रौशन करने में
दिन तो काला होना है
ये कहती है तारीकी
बहुत उजाला होना है
उससे लड़कर लौटा हूँ
ख़ुद से झगड़ा होना है
मेरे शेरों का कल तक
बोटी तिक्का होना है
<poem>