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फागुन से मेरे भी रिश्ते निकलेंगे / तुफ़ैल चतुर्वेदी
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07:42, 3 मार्च 2011
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<poem>फागुन से मेरे भी रिश्ते निकलेंगे
हां, सूखा हूं लेकिन पत्ते निकलेंगे
रिश्तेदारों से उम्मीदें क्यों की थीं फ़जरी आमों में तो रेशे निकलेंगे
Gautam rajrishi
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