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आलेखः(1)-अशोक कुमार शुक्ला
'''विशेष पड़ताल /दस्तावेज'''
'''उस विलक्षण कुंवर के कुछ पत्र!'''
आलेखः(2)-अशोक कुमार शुक्ला
गढवाल जनपद के चमोली नामक स्थान मे मालकोटी नाम के ग्राम में एक निष्ठावान अध्यापक श्री भूपाल सिंह बर्त्वाल के घर पर जिस बालक का जन्म हुआ था कदाचित उसके संबंध में यह कभी नहीं सोचा गया था कि सन् 2011 में अपनी मृत्यु के 64 वर्ष बाद (इनकी मृत्यु 14 सितम्बर 1947 को हुयी) उत्तराखंड की दस शीर्ष विभूतियों में उसकी गणना की जायेगी। हाल ही में ‘तहलका’ पत्रिका द्वारा उत्तराखंड की दस शीर्षस्थ विभूतियों में पहाड के इस कालिदास को चुना गया है। (तहलका फरवरी 2011)
(यह पत्र पं0 शम्भू प्रसाद बहुगुणा द्वारा संपादित ‘मेघ नंदिनी’ के पृष्ठ 101 से साभार उदृधृत किया गया है)
लखनऊ से वापिस लौटकर राजयक्ष्मा से अपनी रूग्णता के पांच छः वर्ष पंवालिया में बिताने के दौरान श्री बर्त्वाल ने अपनी रचनाओं में मुख्य रूप से अपनी शारीरिक पीडा और विरह वेदना के स्वर को ही मुखर किया। अपने दुखों के सम्बन्ध में आजादी के ठीक पहले कथाकार यशपाल केा भेजे गये एक पत्र 27 जनवरी 1947 को उन्होंने लिखा थाः- दिनांक 27 जनवरी 1947 प्रिय यशपाल जी, अत्यंत शोक है कि मैं मृत्युशैया पर पडा हुआ हूॅ और बीस- पच्चीस दिन अधिक से अधिक क्या चलूंगा.....................सुबह को एक दो घंटे बिस्तर से मै उठ सकता हूॅ और इधर उधर अस्यव्यस्त पडी कविताओं को एक कापी पर लिखने की कोशिश करता हूॅ। बीस - पच्चीस दिनों में जितना लिख पाऊंगा, आपके पास भेज दूंगा।(यह पत्र गढवाल विश्वविद्यालय में डा0 हर्षमणि भट्ट द्वारा निष्पादित शोध प्रबंध में उद्धृत हुआ है।) और सचमुच इन शब्दों को लिखने के बाद सदा सदा के लिये इस लोक को छोड दिया और कभी जागकर न उठने के सो गया।
साहित्यकार मंगलेश डबराल उनके संबंध में लिखते हैः-
‘‘ कई साल पहले पडी चंद्र कुंवर बर्त्वाल की दो पंक्तियां- ‘अपने उद्गम को लौट रही, जीवन की नदियां मेरी’ आज भी मुझे विचलित कर देती हैं।’’
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