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रक़ीब से / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
|संग्रह=नक़्शे-फ़रियादी / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
}}
[[Category:कविताएँ]]{{KKCatNazm}}<poem>आ, के वाबस्तः हैं उस हुस्न की यादें तुझ से जिसने इस दिल को परीखानः बना रखा था जिसकी उल्फ़त में भुला रखी थी दुनिया हमने दह्र को दह्र का अफ़साना बना रखा था
आ, के वाबस्ता आशना हैं उस हुस्न की यादें तुझसे <br>तेरे क़दमों से वो राहें जिन पर जिसने इस दिल को परीखाना बना रखा उसकी मदहोश जवानी ने इ’नायत की है <br>जिसकी उल्फ़त में भुला रखी थी दुनिया हमने <br>कारवां गुज़रे हैं जिनसे उसी रा'नाई के दहर को दहर का अफ़साना बना रखा जिसकी इन आँखों ने बे-सूद इ’बादत की है <br><br>
आशना तुझसे खेली हैं तेरे कदमों से वो राहें जिन पर <br>महबूब हवाएँ जिनमें उसकी मदहोश जवानी ने इनायत मलबूस की अफ़सुर्दः महक बाक़ी है <br>कारवां गुज़रे हैं जिनसे उसी रा'नाई के <br>तुझ पर भी बरसा है उस बाम से महताब का नूर जिसकी इन आखों ने बेसूद इबादत जिसमें बीती हुई रातों की कसक बाक़ी है <br><br>
तुझसे खेली हैं तूने देखी है वो महबूब हवायें जिनमें <br>पेशानी वो रुख़सार वो होंठ उसकी मलबूस की अफ़सुर्दा महक बाकी है <br>ज़िन्दगी जिनके तसव्वुर में लुटा दी हमने तुझ पर भी बरसा है उस बाम से महताब का नूर <br>जिसमें बीती पे उट्ठी हैं वो खोई हुई रातों की कसक बाकी साहिर आँखें तुझको मा’लूम है <br><br>क्यों उ’म्र गँवा दी हमने
तूने देखी हम पे मुश्तरिका हैं एहसान ग़मे-उल्फ़त केइतने एहसान केः गिनवाऊँ तो गिनवा न सकूँहमने इस इश्क़ मेम क्या खोया है वो पेशानी, वो रुखसार, वो होंठ क्या सीखा हैजुज़ तेरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ आजिज़ी<ref>विनम्रता<br/ref>सीखी ग़रीबों की हिमायत सीखीज़िन्दगी यासो-हिरमान<ref>आशा व निराशा</ref> के दुख-दर्द के मा’नी सीखेज़ेरदस्तों के मसाइब<ref>निर्बलों की व्यथाएँ</ref> को समझना सीखासर्द आहों के रुख़े-ज़र्द<ref>पीला चेहरा</ref> के मा’नी सीखे जब कहीं बैठ के रोते हैं वो बेकस जिनके तसव्वुर अश्क आँखों में लुटा दी हमने बिलकते हुए सो जाते हैंनातवानों<brref>तुझ शक्तिहीन</ref> के निवालों पे उठी झपटते हैं वो खोयी हुई साहिर आंखें उक़ाब<brref>गरुड़</ref>तुझको मालूम बाजू तोले हुए मँडलाते हुए आते हैं जब कभी बिकता है क्यों उम्र गंवा दी हमने बाज़ार में मज़दूर का ग़ोश्तशाहराहों<brref>राजपथ<br/ref>पे ग़रीबों का लहू बहता हैया कोई तोंद का बढ़ता हुआ सैलाब लिएफ़ाक़ामस्तों<ref>भूख में मस्त रहने वाला</ref> को डुबोने के लिए कहता हैआग-सी सीने में रह-रह के उबलती है न पूछअपने दिल पर मुझे काबू ही नहीं रहता है</poem>{{KKMeaning}}
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