1,050 bytes added,
15:05, 9 मार्च 2011 यहाँ अब शोर ही कोई न सरगोशी किसी की <br />
अगर कुछ है तो शायद हो यह ख़ामोशी किसी की<br />
बिला - नागा उसे खून आदमी का चाहिए अब<br />
हमें खलने लगी है यह बलानोशी किसी की <br />
वो कब्रिस्तान का नक्शा ही रख देंगे बदलकर<br />
किसी की ताजपोशी है तो गुलपोशी किसी की<br />
गली में फिर वही परछाइयाँ लहरा रही हैं<br />
मेरी आहट से कब टूटी है बेहोशी किसी की<br />
यहाँ गिरते हैं हरदम टूट कर शाखों से पत्ते<br />
फिजा में गूंजती रहती है सरगोशी किसी की <br />