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'''पद 241 से 250 तक'''
 (245) 
मेहि मूढ़ मन बहुत बिगोयो।
याके लिये सुनहु करूनामय, मैं जग जनमि-जनमि दुख रोयो।।
तुलसिदास प्रभु! कृपा करहु अब, मैं निज दोष कछू नहिं गोयो।
डासत ही बीति गयी निसा सब, कहहूँ न नाथ! नींद भरि सोयो।।
</poem>
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