{{KKAnthologyHoli}}
<poem>
हुआ जो आके निशाँ आश्कार <ref>व्यक्त, ज़ाहिर</ref> होली का ।बजा रबाब <ref>सारंगी की तरह का एक वाद्ययंत्र</ref> से मिलकर सितार होली का ।सुरुद <ref>गाना</ref> रक़्स <ref>नृत्य</ref> हुआ बेशुमार होली का ।
हँसी-ख़ुशी में बढ़ा कारोबार होली का ।
ज़ुबाँ पे नाम हुआ बार-बार होली का ।।1।।
ख़ुशी की धूम से हर घर में रंग बनवाए ।
गुलाल <ref>एक तरह की लाल बुकनी, जिसे होली के दिनों पर लोग एक-दूसरे के चेहरों पर मलते हैं</ref> अबीर <ref>अभ्रक का चूर्ण</ref> के भर-भर के थाल रखवाए ।
नशों के जोश हुए राग-रंग ठहराए ।
झमकते रूप के बन-बन के स्वाँग दिखलाए ।
बदन में भीगे हैं कपड़े, गुलाल चेहरों पर ।
मची यह धूम तो अपने घरों से ख़ुश होकर ।
तमाशा देखने निकले निगार <ref>प्रेमपात्र</ref> होली का ।।3।।
बहार छिड़कवाँ कपड़ों की जब नज़र आई ।
हर इश्क़ बाज़ ने दिल की मुराद भर पाई ।
निगाह लड़ाके पुकारा हर एक शैदाई <ref>प्रेमी, आशिक</ref> ।
मियाँ ये तुमने जो पोशाक अपनी दिखलाई ।
ख़ुश आया अब हमें, नक़्शो-निगार <ref>बेल-बूटे, फूल-पत्ती</ref> होली का ।।4।।
तुम्हारे देख के मुँह पर गुलाल की लाली ।
हमारे दिल को हुई हर तरह की ख़ुशहाली ।
निगाह ने दी, मये <ref>शराब</ref> गुल रंग की भरी प्याली ।
जो हँस के दो हमें प्यारे तुम इस घड़ी गाली ।
तो हम भी जानें कि ऐसा है प्यार होली का ।।5।।
उधर से रंग लिए आओ तुम इधर से हम ।
गुलाल अबीर मलें मुँह पे होके ख़ुश हर दम ।
ख़ुशी से बोलें हँसे होली खेल कर बाहम <ref>आपस में</ref> ।
बहुत दिनों से हमें तो तुम्हारे सर की कसम ।
इसी उम्मीद में था इन्तिज़ार होली का ।।8।।
बुतों <ref>प्रिय पात्र</ref> की गालियाँ हँस-हँस के कोई सहता है ।
गुलाल पड़ता है कपड़ों से रंग बहता है ।
लगा के ताक कोई मुँह को देख रहता है ।