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06:39, 21 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
}}
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<Poem>
वह तो सिर्फ़ मौसम था
हवाएं थीं
बयार के साथ झूमते दरख़्तों की
शोख टहनियां थीं
रंग थे फूलों के
और एक आसमान का भी
नस-नस में उतरता वह तो
राग था एक ऋतु का
नहीं प्यार नहीं
वह तो
इन्हीं बयारों के साथ
लौट आई एक भावना थी
तुम्हारे रूप का गान करती
तुम्हारे वैभव से विस्मित
तुम्हारे वसंत में विभोर
प्यार नहीं
वह तो
सिर्फ़ एक मौसम था।
</poem>