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हिसाब / प्रकाश
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07:37, 21 मार्च 2011
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<Poem>
मुझे हर साँस का हिसाब देना था
मेरे पास साँसें कम थीं
इन्हीं में ब्रह्माण्ड की पूरी क़िताब पढ़ लेनी थी!
</poem>
अनिल जनविजय
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