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नया दौर / वाज़दा ख़ान
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14:36, 21 मार्च 2011
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<poem>
बीनती
हू~म
हूँ
तुमसे अपने सपने
लेकर उन्हें आकाश में भरती हूँ उड़ान
अनिल जनविजय
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