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सहारा / ज़िया फतेहाबादी
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17:39, 22 मार्च 2011
मैंने चाहा था के खवाबों की हसीं दुनिया में
मुस्कराहट से हमागोश
रहूं
रहूँ
ग़म न सहूँ
खोए-खोए से अँधेरे ये उजाले हर सू
रक्स करती किसी दोशीज़ा किरण को छू लूँ
अनिल जनविजय
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