Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंददास }}{{KKAnthologyGarmi}} [[Category:पद]] <poeM> सूर आयौ माथे पर, छाया …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नंददास
}}{{KKAnthologyGarmi}}
[[Category:पद]]
<poeM>
सूर आयौ माथे पर, छाया आई पाइँन तर,
उतर ढरे पथिक डगर देखि छाँह गहरी ।
सोए सुकुमार लोग जोरि कै किंवार द्वार,
पवन सीतल घोख मोख भवन भरत गहरी ॥
धंधी जन धंध छाँड़ि, जब तपत धूप डरन,
पसु-पंछी जीव-जंतु छिपत तरुन सहरी ।
नंददास प्रभु ऐसे में गवन न कीजै कहुँ,
माह की आधी रात जैसी ये जेठ की दुपहरी ॥
</poem>
916
edits