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अपना गाँव / शलभ श्रीराम सिंह

No change in size, 16:19, 29 मार्च 2011
एक लम्बी साँस लेकर-बन्द कर आँखें-सहज ही सबों से जो
कहा करते थे : खा गया मैं सड़क पर चलते हुए हर आदमी को !
::रेलगाड़ी-बैलगाड़ईबैलगाड़ी...और मोटर...और स्टेशन...!
और साँड़ों की तरह जो डकरते-भरते ठहाके-ज़ोर से सुर साध गाते थे
’लड़िगईं...लड़िगईं...लड़िगईं...लड़िगईं
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