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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
गुमसुम
कछारों से
लौटती-उदास हवा !
अनमने रक्त पलाशों की चुप्पी पर तैरते
उलूकों के पंख-स्वर ।
पद-चापों से विदा मांगती
पगडण्डियाँ ।
आपस में
भेद की बातें करते
ईख-अरहर के खेत !

अपराधी मौसम की यह सांझ
ग़लती के शेष क्षणों के नाम ।
</poem>
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