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[[Category:ग़ज़ल]]
'''लेखन वर्ष: २००२'''<br/><br/>जब भी तेरा नाम याद आयेगा<br/>मेरी किताबों में पाया जायेगा<br/><br/>
रातें गुज़रे अगस्त की रातें<br/poem>वो चाँद कब लौट के जब भी तेरा नाम याद आयेगा<br/><br/>मेरी किताबों में पाया जायेगा
वो फ़रवरी रातें गुज़रे अगस्त की धूप देखी नहीं<br/>रातेंबसंत शाखों पे कैसे मेरा चाँद कब लौट के आयेगा<br/><br/>
ख़ुशज़बाँ बिना ख़ुशी परायी है<br/>वो फ़रवरी की धूप देखी नहींग़मज़दा हो के जिया जायेगा<br/><br/>बसंत शाख़ों पे कैसे आयेगा
तारीखों की तारीक़ में चाँद गुमख़ुशज़बाँ<ref>अच्छी बातें करने वाला<br/ref>बिना ख़ुशियाँ परायी हैंरोशनी कौन कैसे उगायेगाअब ग़मज़दा<br/ref>दु:ख का डर<br/ref>होके जिया जायेगा
जब भी पढ़ा ग़ज़ल को आँखों नेतारीख़ों की तारीक़<br/ref>चेहरा तेरा झिलमिलायेगाअंधेरा<br/><br/ref>में चाँद गुमरोशनी कौन कैसे उगायेगा
ख़ुशबू तेरी इक-इक हर्फ़ में<br/>जब भी पढ़ा इस ग़ज़ल को आँखों नेहर अस्लूब निभाया जायेगा<br/><br/>चेहरा तेरा ही झिलमिलायेगा
क़यामत की रात जब आयेगी<br/>ख़ुशबू तेरी इक-इक हर्फ़ में हैज़ुबाँ पर तेरा नाम आयेगाहरेक अस्लूब<br/ref>नियम या शैली<br/ref>निभाया जायेगा
‘नज़र’ क़यामत की ख़ाहिश तुम शीना<br/>रात जब भी आयेगीतुम्हें न पाया तो क्या पायेगा<br/><br/>ज़ुबाँ पर तेरा ही नाम आयेगा
'''''अस्लूब''': नियम या शैली''‘नज़र’ की हर ख़ाहिश तुम हो शीना<ref>प्रेयसी, जिसमें रोशनी की तरह दिव्यता हो</ref>तुम्हें न पाया तो क्या पायेगा {{KKMeaning}} </poem>