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00:30, 3 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
गुनगुनाती हुई साँझ के आँगन में
चिड़ियों के पीछे किलकते हुए
शिशु-सा कोलाहल !
मेरी आँखों के आगे
डालियों के फूल हवा में तैर कर
ख़ामोश किलकारियाँ पिये जा रहे हैं !
रंग-वर्षी बादलों के नन्हें शिशु
मेरी बरौनियों तक झुक कर कहते हैं :
मैं मन्नू हूँ !
एक झटका-सा लगता है !
मेरे हाथ की किताब
टाफी का डब्बा बन जाती है !
साँझ का सम्पूर्ण वातावरण मन्नू
और मैं उसका चाचा ...!
</poem>