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00:37, 3 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
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<poem>
दूर-जंगल से
गुज़रते हुए
घोड़ों की टापों से
आस-पास की बस्तियों में
सन्नाटा छा गया है !
किसी
बेहद हँसमुख और मासूम
बच्चे की खाल
उधेड़कर मैदान में फेंक दी गई है !
ईश्वर
उसी खाल के नीचे छिप कर
अपने आपको
सुरक्षित महसूस कर रहा है !
(1966)
</poem>